जागर का अर्थ "जगाना" होता है। जागर मे पूर्वजो की पूजा की जाती है।
जागर मे अलग अलग देवी देवताओ जैसे गोलू देवता,हरजु देवता, सैम देवता,गंगनाथ,को पूजा जाता है। जिन्हे ग्राम देवता भी कहा जाता है
उत्तराखंड में लगने वाली जागर में जगरिया डंगरिया और स्यानकर होते है। उत्तराखंड की पहाड़ियों में जागर के माध्यम से लोग अपने देवताओं को जागृत करते हैं और उनकी शक्ति का लाभ लेते हैं।
जागर में रात्रि के समय में जलती आग के आसपास, गाँव और परिवार वाले, जगरिया(दास )और वाद्य यंत्रों की मदद से शक्ति का आह्वान करते हैं।
दास द्वारा शक्ति का आवाहन किये जाने पर जागर मे डंगरियों के शरीर मे शक्ति का आगमन होता है।डंगरिया को कुमाऊं भाषा मे डांगर भी कहा जाता है।जिसका अर्थ है रास्ता' डंगरिया ही देवी देवताओ को रास्ता दिखाता है।
जागर के लिए चैत्र,श्रावण, मार्गशीष के महीने पवित्र माने जाते है।
जागर घरो मे या सामूहिक रूप से मंदिरो मे लगाया जाता है।सामूहिक रूप से मंदिरो मे लगाया जाने वाले जागर को बेसी कहा जाता है। जो बाईस दिनतक लगता है
जागर मे अलग अलग डमरू, थाली, ढोल, दमाऊ, हुड़का आदि वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया है।
देवभूमि की मशहूर जागर गायिका बसंती बिष्ट को २०१७ मे पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। जिन्होंने जागर को एक नयी पहचान दिलाई।
जगरिया प्रीतम भरतवाण को भारत सरकार द्वारा पारम्परिक लोक कला के क्षेत्र में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया।
जागर के दौरान गाए जाने वाले विभिन्न देवी देवताओं के गाथागीत कुमाऊंनी भाषा और गढ़वाली भाषा के विशाल लोक साहित्य का एक हिस्सा हैं|